राधे राधे - जय श्री कृष्णा - राधे राधे
हम सभी पूजा-अर्चना करते हैं। हम चाहें किसी भी धर्म में पैदा हुए हैं लेकिन हम सभी को पूजा-अर्चना करना तभी सिखा दिया जाता है, जब हम ना तो बोल, ना चल पाते हैं।
जब किसी परिवार में कोई नन्हा मेहमान आता है तब हम उस अल्लाह, ईश्वर, गॉड, वाहेगुरु का शुक्रिया करते हैं। हम उस नन्हें मेहमान को मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर, गुरूद्वारे लेकर जाते हैं जिससे उसको परमपिता परमात्मा का आशीर्वाद प्राप्त हो और वो एक नेक, वीर, सर्वगुण सम्पन्न व्यक्ति बनें। उसका जीवन सरल और सम्पन्न हो।
हम लोगों की भाषा अलग हो सकती है, व्यवहार अलग हो सकता है, पहनावा अलग हो सकता है परन्तु हम लोगों का उस परमशक्तिमान परमपिता परमात्मा पर जो विश्वास है वो अलग नहीं होता और वो विश्वास कभी गलत भी नहीं होता।
जैसे जब बच्चा छोटा होता है, तब उसकी भाषा उसका रोना और हँसना ही होती है। बच्चे भूख लगी बच्चा रोया माँ ने आकर दूध पिला दिया। उसने बिस्तर गीला किया फिर रोया माँ ने उसका काम कर दिया। माँ को अपने बच्चे की बात समझने के लिए कभी भी भाषा की जरुरत नहीं पड़ती। ठीक वैसे ही उस परमपिता को हमारी बात समझने के लिए भाषा की जरुरत नहीं होती है। हमने आँखें बंद करके सिर झुकाया उसने आपकी बात सुन ली।आपने हाथ फैला कर आकाश की ओर देखा उसने आपकी बात सुन ली।
मैं सिर्फ यह कहना चाहती हूँ कि आप जहाँ भी रहें जिस हाल में भी हो अपने उस पिता से कभी दूर ना रहें। उसको हमेशा अपने पास महसूस करें। आप हमेशा उसको अपने पास ही पाएंगे।
राधे राधे जय श्री कृष्णा राधे राधे
गीता राधे-मोहन
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