Monday, 7 March 2016

श्री शिव स्तुति

ॐ नमः शिवाय 

श्री गिरिजापति बंदि कर, चरण मध्य शिर नाय।
कहत गीता राधे तुम, मो पर हो सहाय ॥


नंदी की सवारी, नाग अंगीकार धारी नित। 
संत सुखकारी, नीलकण्ठ  त्रिपुरारी हैं।।
गले मुण्डमाला धारी, सर सोहै जटाधारी। 
वाम अंग में बिहारी, गिरिजा सुतवारी हैं ॥ 
दानी बड़े भारी, शेष शारदा पुकारी। 
काशीपति मदनारी, कर शूल च्रकधारी हैं ॥ 
कला उजियारी, लख देव सो निहारी । 
यश गावें वेदचारी, सो हमारी रखवारी हैं ॥ 
शम्भू बैठे हैं विशाला, पीवें भंग का प्याला । 
नित रहे मतवाला, अहि अंग पै चढ़ाये हैं ॥ 
गले सोहे मुण्डमाला, कर डमरू विशाला । 
अरु ओढ़ मृगछाला, भस्म अंग में लगाए हैं ॥ 
संग सुरभी सूत माला, करै  भक्त प्रति पला । 
मृत्यु हरते हैं अकाला, सीस जटा को बढ़ाए हैं ॥ 
कहे रामलाला, करो मोहि तुम निहाला । 
गिरिजापति आला, जैसे काम को जलाए हैं ॥ 
मारा है जलन्धर औ त्रिपुर को संहारा । 
जिन जारा  है काम जाके, सीस गंग धारा है ॥ 
धारा है अपार जासु, महिमा तीनों लोक । 
भाल सोहैं चन्द्र, जाकी सुषमा के सारा  है ॥ 
सारा अहिबात सब, खायो हालाहल जानि । 
जगत के आधार, जाहि वेदन उचारा है ॥ 
चारा हैं भाँग  जाके, दूार हैं गिरीश कन्या । 
कहत गीता सोई, मालिक हमारा है ॥ 
अष्ट गुरु ज्ञानी जाके, मुख वेद बानी शुभ । 
भवन में भवानी सुख सम्पत्ति लहा करें ॥ 
मुण्डन की माला जाके चन्द्रमा ललाट सोहै । 
दासन के दस जाके दारिद दहा करै ॥ 
चारों दूार बन्दी जाके दूार पाल  नंदी । 
कहत कवि अनंदी, नाहक नर हाहा करें ॥ 
जगत रिसाय यमराज, की कहा बसाय । 
शंकर सहाय तो, भयंकर कहा करैं ॥ 


॥ सवैया ॥ 

गौर शरीर में गौरि विराजत,
मोर जटा  सिर  सोहत जाके । 
नागन को उपवीत लसै ये,
गीता कहै ससि बल में वाके॥ 
दान करै  पल में फल चारि,
औ  टारत अंक लिखे विधना के । 
शंकर नाम निशंक सदा ही,
भरोसे रहें निशि वासर  ताके ॥ 

॥ दोहा ॥ 

मगसर मास हेमंत ऋतु,छट दिन है शुभ बुध्द । 
कहत अयोध्यादास तुम, शिव के विनय समुध्द ॥ 

ॐ  नमः शिवाय  ॐ  नमः शिवाय  ॐ  नमः शिवाय  ॐ  नमः शिवाय  ॐ  नमः शिवाय ॐ  नमः शिवाय 

ॐ  नमः शिवाय  ॐ  नमः शिवाय   ॐ  नमः शिवाय  ॐ  नमः शिवाय  ॐ  नमः शिवाय ॐ  नमः शिवाय 

ॐ  नमः शिवाय  ॐ  नमः शिवाय  ॐ  नमः शिवाय  ॐ  नमः शिवाय  ॐ  नमः शिवाय ॐ  नमः शिवाय 

ॐ  नमः शिवाय  ॐ  नमः शिवाय   ॐ  नमः शिवाय  ॐ  नमः शिवाय  ॐ  नमः शिवाय ॐ  नमः शिवाय 

ॐ  नमः शिवाय  ॐ  नमः शिवाय  ॐ  नमः शिवाय  ॐ  नमः शिवाय  ॐ  नमः शिवाय ॐ  नमः शिवाय 

ॐ  नमः शिवाय  ॐ  नमः शिवाय   ॐ  नमः शिवाय  ॐ  नमः शिवाय  ॐ  नमः शिवाय ॐ  नमः शिवाय 

ॐ  नमः शिवाय  ॐ  नमः शिवाय  ॐ  नमः शिवाय  ॐ  नमः शिवाय  ॐ  नमः शिवाय ॐ  नमः शिवाय 

ॐ  नमः शिवाय  ॐ  नमः शिवाय   ॐ  नमः शिवाय  ॐ  नमः शिवाय  ॐ  नमः शिवाय ॐ  नमः शिवाय 


श्री शिव चालीसा

॥  दोहा ॥  

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान । 
कहत अयोध्यादास तुम, देव अभय वरदान ।। 

जय गिरिजापति दीनदयाला ।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला ।।
 
भाल चन्द्रमा सोहत नीके । 
कानन कुण्डल नाग फनी के।।
अंग गौर  शिर गंग सुहाये। 
मुण्डल माला तन क्षार लगाये ।।  
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। 
छवि को देख नाग मुनि मोहे।। 
मैना मातु कि हवे दुलारी। 
वाम अंग सोहत छवि न्यारी।।
कर त्रिशूल सोहत छवि भरी। 
करत सदा शत्रुन क्षयकारी।।
नन्दि गणेश सोहैं तहँ कैसे। 
सागर मध्य कमल हैं जैसे।।
कार्तिक श्याम और गणराऊ। 
या छवि कहि  जात न काऊ।।   
देवन जबहीं जाय पुकारा। 
तबहीं  दुःख प्रभु आप निवारा।।
किया उपद्रव तारक भारी। 
देवन सब मिली तुमहिं जुहारी।।
तुरत षडानन आप पठायउ। 
लव निमेष महं मारि गिरायउ।।
आप जलंधर असुर संहारा। 
सुयश तुम्हार विदित संसारा।। 
त्रिपुरासुर सन युध्द मचाई। 
तबहिं कृपा कर लीन बचाई।।
किया तपहिं भागीरथ भारी। 
पूरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी।।
दानिन महँ तुम सम  कोउ नाहिं। 
सेवक स्तुति करत सदाहीं।।
वेद माहि महिमा तुम गाई। 
   अकथ अनादि भेद नहिं पाई।।     
प्रगटे उदधि मंथन में ज्वाला। 
जरत सुरासुर भये विहाला।।
कीन्ही दया तहँ करी सहाई। 
नीलकंठ तब नाम कहाई।।
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हां। 
जीत के लंक विभीषण दीन्हा।।
सहस कमल में हो रहे धारी। 
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी।।
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। 
कमल नैन पूजन चहं सोई।।
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। 
भए प्रसन्न दिए इच्छित वर।।
जय जय जय अनन्त  अविनाशी। 
करत कृपा सबके घटवासी।।
दुष्ट सकल नित मोहि सतावैं। 
भ्रमत रहौं मोहे चैन न आवैं।।
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। 
यह अवसर मोहि आन उबारो।।
ले त्रिशूल शत्रुन को मारो। 
संकट से मोहि आन उबारो।।
मात-पिता भ्राता सब होई। 
संकट में पूछत नहिं कोई।।
स्वामी एक है आस तुम्हारी। 
आय हरहु मम संकट भारी।।
धन निर्धन को डेट सदा ही। 
जो कोई जाँचे सो फल पाहीं।।
अस्तुति केहि विधि करैं  तुम्हारी। 
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी।।       
शंकर हो संकट के नाशन। 
मंगल कारण विघ्न विनाशन।।
योगि यति मुनि ध्यान लगावैं। 
शारद नारद शीश नवावैं।।
नमो नमो जय नमः शिवाय। 
सुर ब्रह्मादिक पार न पाए।।
जो यह पाठ करे मन लाई। 
ता पर होत  हैं शम्भु  सहाई।।
ऋनियां जो कोई हो अधिकारी। 
पाठ करे सो पावन हारी।।
पुत्र होन की इच्छा जोई। 
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई।।
पंडित त्रयोदशी को लावे। 
ध्यान पूर्वक होम करावे।।
त्रयोदशी व्रत करे हमेशा। 
तन नहिं ताके रहै कलेशा।। 
धुप दीप नैवेद्य चढ़ावे। 
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे।।  
जन्म जन्म के पाप नसावे। 
अन्त धाम शिवपुर में पावे।।
कहैं गीता आस तुम्हारी। 
जानि सकल दुःख हरहु हमारी।।

॥ दोहा ॥ 

नित नेम उठि  प्रातः ही, पाठ करो चालीस। 
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश।।
मगसर छठि हेमन्त ऋतु, संवत चौंसठ जान। 
स्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण।।  
         









       


    

Friday, 4 March 2016

MAHA SHIVRATRI (7th MARCH 2016 )

Maha Shivratri 2016: Why and how do Hindus celebrate 

the religious festival in India?

Maha Shivratri 2016

Maha Shivratri is an auspicious Hindu festival that is dedicated to the worship of Lord Shiva. 
The celebration falls on the 13th night and 14th day of the Hindu calendar month of 
Phalguna or Maagh every year and in 2016 it is being observed on the evening of 7 March.
Many Hindus believe that those who worship Lord Shiva on the auspicious day of 
Maha Shivratri would be cleansed of all their sins, making it one of the most important 
festivals for the Hindu religion. Maha Shivratri is also said to be the day when 
Lord Shiva and Goddess Parvati got married, bringing together two of the 
greatest forces in the universe, with Lord Shiva being known as the 'destroyer' of 
the Universe, paving the way for beneficial change.
IBTimes UK rounds up everything you need to know about the religious festival of 
Maha Shivratri.
Who is Lord Shiva?

What is the significance of the day for women?
What are the prayer ceremonies associated with Maha Shivratri?

He is one of three Hindu gods who are responsible for the creation, upkeep and destruction of the universe, making him an extremely significant and important God in Hinduism. Lord Shiva's role was to destroy the universe in order to recreate it, with the destruction being viewed by Hindus as a positive and constructive thing that paves the way for ridding the world of imperfections.
As destroyer of the universe, Lord Shiva was known to have an untamed behaviour. He was only calmed by his wife Goddess Parvati, who would bring balance to his life and turn him into a lover. This is the reason why the day of their union is celebrated so widely among Hindus.
Lord Shiva is also believed to be the God of Yoga and is often portrayed in a yoga position.
Maha Shivratri is also an extremely significant day for Hindu women, who perform a hunger fast during the day to appease Lord Shiva's wife, Goddess Parvati. Parvati is the mother goddess in Hinduism and represents the goddess of love, fertility and devotion. Parvati is believed to be the goddess that blesses women with marital bliss and long and prosperous married life.She is also thought to represent divine strength and her relationship with Lord Shiva is one of equality, with Parvati always represented by the God's side.
Lord Shiva is often represented by the Shiva ling, a statue that represents the power of Shiva and his masculinity. Hindus believe that the Shiva ling represents the seed of the universe and on Maha Shivratri the Shiva ling is bathed in water, milk and honey as it is worshipped. Beautiful flowers are also placed around the statue.
The famous prayer ceremony conducted on this day is the Maha Rudra Abhishek, which is performed to gain the blessing of Lord Shiva. The puja is said to worship Lord Shiva in his "rudra" form, or "benevolent" form. It is said that the Maha Rudra Abhishek is hailed by all Vedic scriptures as one of the greatest pujas to perform in order to remove all evil and attain prosperity. Believers say that when you pray to Lord Shiva every negative form of energy that surrounds you is transformed into peace and joy.

VIJYA EKADASHI VRAT KATHA

विजया एकादशी व्रत कथा

फाल्गुन कृष्ण एकादशी



धर्मराज युधिष्‍ठिर बोले - हे जनार्दन! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसकी विधि क्या है? कृपा करके आप मुझे बताइए। 

श्री भगवान बोले हे राजन् - फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम विजया एकादशी है। इसके व्रत के प्रभाव से मनुष्‍य को विजय प्राप्त‍ होती है। यह सब व्रतों से उत्तम व्रत है। इस विजया एकादशी के महात्म्य के श्रवण व पठन से समस्त पाप नाश को प्राप्त हो जाते हैं। एक समय देवर्षि नारदजी ने जगत् पिता ब्रह्माजी से कहा महाराज! आप मुझसे फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी विधान कहिए। 

ब्रह्माजी कहने लगे कि हे नारद! विजया एकादशी का व्रत पुराने तथा नए पापों को नाश करने वाला है। इस विजया एकादशी की विधि मैंने आज तक किसी से भी नहीं कही। यह समस्त मनुष्यों को विजय प्रदान करती है। त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्रजी को जब चौदह वर्ष का वनवास हो गया, तब वे श्री लक्ष्मण तथा सीताजी ‍सहित पंचवटी में निवास करने लगे। वहाँ पर दुष्ट रावण ने जब सीताजी का हरण ‍किया तब इस समाचार से श्री रामचंद्रजी तथा लक्ष्मण अत्यंत व्याकुल हुए और सीताजी की खोज में चल दिए। 

घूमते-घूमते जब वे मरणासन्न जटायु के पास पहुँचे तो जटायु उन्हें सीताजी का वृत्तांत सुनाकर स्वर्गलोक चला गया। कुछ आगे जाकर उनकी सुग्रीव से मित्रता हुई और बाली का वध किया। हनुमानजी ने लंका में जाकर सीताजी का पता लगाया और उनसे श्री रामचंद्रजी और सुग्रीव की‍ मित्रता का वर्णन किया। वहाँ से लौटकर हनुमानजी ने भगवान राम के पास आकर सब समाचार कहे। 

श्री रामचंद्रजी ने वानर सेना सहित सुग्रीव की सम्पत्ति से लंका को प्रस्थान किया। जब श्री रामचंद्रजी समुद्र से किनारे पहुँचे तब उन्होंने मगरमच्छ आदि से युक्त उस अगाध समुद्र को देखकर लक्ष्मणजी से कहा कि इस समुद्र को हम किस प्रकार से पार करेंगे। 


श्री लक्ष्मण ने कहा हे पुराण पुरुषोत्तम, आप आदिपुरुष हैं, सब कुछ जानते हैं। यहाँ से आधा योजन दूर पर कुमारी द्वीप में वकदालभ्य नाम के मुनि रहते हैं। उन्होंने अनेक ब्रह्मा देखे हैं, आप उनके पास जाकर इसका उपाय पूछिए। लक्ष्मणजी के इस प्रकार के वचन सुनकर श्री रामचंद्रजी वकदालभ्य ऋषि के पास गए और उनको प्रमाण करके बैठ गए। 

मुनि ने भी उनको मनुष्य रूप धारण किए हुए पुराण पुरुषोत्तम समझकर उनसे पूछा कि हे राम! आपका आना कैसे हुआ? रामचंद्रजी कहने लगे कि हे ऋषे! मैं अपनी सेना ‍सहित यहाँ आया हूँ और राक्षसों को जीतने के लिए लंका जा रहा हूँ। आप कृपा करके समुद्र पार करने का कोई उपाय बतलाइए। मैं इसी कारण आपके पास आया हूँ। 

वकदालभ्य ऋषि बोले कि हे राम! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का उत्तम व्रत करने से निश्चय ही आपकी विजय होगी, साथ ही आप समुद्र भी अवश्य पार कर लेंगे। 

इस व्रत की विधि यह है कि दशमी के दिन स्वर्ण, चाँदी, ताँबा या मिट्‍टी का एक घड़ा बनाएँ। उस घड़े को जल से भरकर तथा पाँच पल्लव रख वेदिका पर स्थापित करें। उस घड़े के नीचे सतनजा और ऊपर जौ रखें। उस पर की स्वर्ण की मूर्ति स्थापित करें। एका‍दशी के दिन स्नानादि से निवृत्त होकर धूप, दीप, नैवेद्य, नारियल आदि से भगवान की पूजा करें।

तत्पश्चात घड़े के सामने बैठकर दिन व्यतीत करें ‍और रात्रि को भी उसी प्रकार बैठे रहकर जागरण करें। द्वादशी के दिन नित्य नियम से निवृत्त होकर उस घड़े को ब्राह्मण को दे दें। हे राम! यदि तुम भी इस व्रत को सेनापतियों सहित करोगे तो तुम्हारी विजय अवश्य होगी। श्री रामचंद्रजी ने ऋषि के कथनानुसार इस व्रत को किया और इसके प्रभाव से दैत्यों पर विजय पाई। 

अत: हे राजन्! जो कोई मनुष्य विधिपूर्वक इस व्रत को करेगा, दोनों लोकों में उसकी अवश्य विजय होगी। श्री ब्रह्माजी ने नारदजी से कहा था कि हे पुत्र! जो कोई इस व्रत के महात्म्य को पढ़ता या सुनता है, उसको वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

Samuhik Pooja Trust: IMPORTANCE OF WORSHIP

Samuhik Pooja Trust: IMPORTANCE OF WORSHIP: राधे राधे -  जय श्री कृष्णा - राधे राधे  हम सभी पूजा-अर्चना करते हैं।  हम चाहें  किसी भी धर्म में पैदा हुए हैं लेकिन हम सभी को पूजा-अर्...

Tuesday, 1 March 2016

IMPORTANCE OF WORSHIP

राधे राधे -  जय श्री कृष्णा - राधे राधे 

हम सभी पूजा-अर्चना करते हैं।  हम चाहें  किसी भी धर्म में पैदा हुए हैं लेकिन हम सभी को पूजा-अर्चना करना तभी सिखा दिया जाता है,  जब हम ना तो बोल, ना चल पाते हैं।  

 
जब किसी परिवार में कोई नन्हा मेहमान आता है तब हम उस अल्लाह, ईश्वर, गॉड, वाहेगुरु का शुक्रिया करते हैं।  हम उस नन्हें मेहमान को मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर, गुरूद्वारे लेकर जाते हैं जिससे उसको परमपिता परमात्मा का आशीर्वाद प्राप्त हो और वो एक नेक, वीर, सर्वगुण सम्पन्न व्यक्ति बनें। उसका जीवन सरल और सम्पन्न हो।  
हम लोगों की भाषा अलग हो सकती है, व्यवहार अलग हो सकता है, पहनावा अलग हो सकता है परन्तु हम लोगों का उस परमशक्तिमान परमपिता परमात्मा पर जो विश्वास है वो अलग नहीं होता और वो विश्वास कभी गलत भी नहीं होता। 

जैसे जब बच्चा छोटा होता है, तब उसकी भाषा उसका रोना और हँसना  ही होती है। बच्चे भूख लगी बच्चा रोया माँ ने आकर दूध पिला दिया। उसने बिस्तर गीला किया फिर रोया माँ ने उसका काम कर दिया। माँ को अपने बच्चे की बात समझने के लिए कभी भी भाषा की जरुरत नहीं पड़ती।  ठीक वैसे ही उस परमपिता को हमारी बात समझने के लिए भाषा की जरुरत नहीं होती है। हमने आँखें बंद करके सिर झुकाया उसने आपकी बात सुन ली।आपने हाथ फैला कर आकाश की ओर देखा उसने आपकी बात सुन ली। 


        मैं सिर्फ यह कहना चाहती हूँ कि आप जहाँ भी रहें  जिस हाल में भी हो अपने उस पिता से कभी दूर ना रहें। उसको हमेशा अपने पास महसूस करें।  आप हमेशा उसको अपने पास ही पाएंगे। 

          राधे राधे जय श्री कृष्णा राधे राधे 

गीता राधे-मोहन